Vedshree

Add To collaction

हिंदी कहानियां - भाग 160

काम की जिम्मेदारी


काम की जिम्मेदारी   मीना आज पतंग उड़ा रही है। पतंग की डोर टूट जाती है.....मीना पतंग पकड़ने के लिए भागी। वो अपनी आँखें जमाये उसके पीछे भाग रही थी। तभी उसकी पतंग जा फंसी रीता के घर के सामने वाले पेड़ की टहनियों में। मीना उछल-उछल कर पतंग की डोर को पकड़ने की कोशिश कर रही थी। जिसे देख के वहां खड़ा श्रवण (रीता का भाई) हँसने लगा।   मीना पेड़ पर चढ़ कर पतंग उतार लाई। श्रवण- मीना तुमने तो कमाल कर दिया।   मीना- इसमें कमाल कैसा श्रवण? पेड़ पर चढ़ना कोई मुश्किल काम थोड़े ही ना है। वैसे तुम यहाँ खड़े-खड़े क्या कर रहे हो?   श्रवण बताता है कि वह डाकिया चाचा की राह देख रहा है।......अपनी चिठ्ठी का इंतज़ार करता है। दरअसल कई दिन पहले......   तभी श्रवण की माँ उसे घर के काम निपटाने को आवाज़ लगाती है। घर में मेहमान आने वाले हैं और रीता को थोड़ी देर के बाद बेला के साथ मेले में जाना है....। माँ कहती है कि मैं कपडे धो रही हूँ तुम उन्हें तार पर डाल देना।   श्रवण- ....तुम कहो तो कुएं से पानी भरकर ले आऊंगा मैं।   मीना उसे कपडे सुखाने की सलाह देती है। श्रवण कहता है, ‘ ये घर के काम करना, मुझे नहीं अच्छा लगता। बहुत शर्म आती है मुझे ये सब करने में...और वैसे भी कपडे सुखाना, वर्तन मांजना,खाना बनाना, घर साफ करना ...ये सब लड़कियों के काम हैं।   मीना, श्रवण को राजू का उदहारण देते हुए समझाती है, ‘ मेरा भाई राजू....जब भी जरूरत होती है वो घर के कामों में मेरा और माँ का हाथ बटाता है।’   तभी श्रवण की माँ पानी भरने को फिर से आवाज़ लगाती हैं। श्रवण भागता हुआ कुएं पर गया और जल्दी से पानी भरकर ले आया।   .......मीना ने श्रवण को उसकी चिठ्ठी दी जो लेखुराम ने श्रवण को लिखी है। ‘लेखूराम...मशहूर लेखक’। श्रवण मीना को बताता है, ‘दरअसल मैं लेखूराम को अपनी कई कहानियां भेज चुका हूँ और मैं हर चिठ्ठी में उनसे निवेदन करता हूँ कि वो मुझे बताएं कि उन्हें मेरी कहानियां कैसी लगी?....और देखो, आज उनका जबाब भी आ गया।   श्रवण लिफाफा खोल के चिठ्ठी पढ़ता है- “प्रिय श्रवण, मैंने तुम्हारी लिखी सारी कहानियां पढी, वो कहानियां मुझे कैसी लगी ये मैं तुम्हें मिलके बताऊंगा।...श्रवण तुम्हे ये जाँ के खुशी होगी कि मेरी बहन तुम्हारे ही गाँव में रहती है और मैं इस महीने की १६ तारीख को एक दिन के लिए अपनी बहन के पास आ रहा हूँ ..हो सके तो मुझसे मिलना। तुम्हारा शुभचिंतक- लेखुराम”   ‘....अरे हाँ १६ तारीख तो आज ही है। मैं जल्दी से लेखूराम से मिलने जाता हूँ।’   मीना- श्रवण, पहले चाची जी और रीता को ये खुशखबरी दो।   श्रवण ने रीता और अपनी माँ को सारी बात बताई।जिसे सुन के वो दोनो बहुत खुश हुईं। श्रवण की माँ- ये तो बहुत खुशी की बात है, तुम लेखूराम से मिलने जरूर जाओ लेकिन घर के काम में मेरी मदद करके।   श्रवण की माँ उसे समझाती है, ‘काम तो काम होता है बेटा, फिर इसमें अच्छे बुरे की क्या बात है?....तुम्हें जाना है जरूर जाओ लेकिन घर के काम में मेरी मदद.....।   श्रवण- ठीक है, नहीं जाऊँगा मैं लेखूराम से मिलने.....हुंह।   मीना- अरे, तुम गुस्सा क्यों हो रहे हो श्रवण। चाचीजी,आप श्रवण को जाने दीजिये घर के काम में मैं आपकी मदद कर दूंगी।   श्रवण लेखूराम से मिलने उसकी बहन के घर गया। उस समय लेखूराम खाना खा रहा था। खाना खाते-खाते, लेखूराम ने श्रवण से बहुत सी बातें की और फिर....खाना ख़त्म करके उसने अपने वर्तन उठाये और श्रवण से बोला, ‘ मैं ये वर्तन धो के अभी आता हूँ।’   लेखूराम समझाते हुए कहते हैं, ‘अपना काम करने में शर्म कैसी?’...घर के काम करने की जिम्मेदारी जितनी लड़कियों की है उतनी लड़कों की भी है। और वैसे भी ये काम लड़कियों के है वो लड़कों के हैं, मुझे न ये कहना अच्छा लगता है न ही सुनना।’    लेखूराम की बात सुनके श्रवण गहरे सोच में पड़ गया। शायद उसे एहसास हो रहा था कि उसे घर के काम करने में रीता और माँ का हाथ बताना चाहिए था।

   0
0 Comments